तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
हम सब हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान राम- कृष्ण का भी देश है और गॉड, वाहे गुरु और अल्लाह का भी। यह देश रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी, कृष्ण बिहारी ‘नूर’ का है तो सुहैल काकोरवी, तश्ना आज़मी का भी और सरदार पंक्षी और चरण सिंह ‘बशर” का भी। टॉम आल्टर और मार्क ट्रुली तो इस देश की गंगा-जमुनी संस्कृति के ऐसे मुरीद हुये कि वे हिंदुस्तान के ही होकर रह गये।उर्दू शायरी में भी हमारी इस संस्कृति की विशेषता को तमाम शायरों ने अपने अपने अंदाज़ में लफ़्ज़ दिये हैं। हिंदुस्तान की यह सोंधी सी महक शायरी में भी अपनी पूरी शिद्दत के साथ मौजूद है। आज हम अपने शायरी के इस खूबसूरत सफ़र में तमाम शायरों और उनके लाजवाब शेरों के ज़रिये हिंदुस्तान की उस मिट्टी से गुफ़्तगू करेंगे जो हम सबमें मौजूद है। हमारे देश की एकता और सांझी विरासत को हमारे मोहतरम शायरों ने किस कमाल के साथ उर्दू के इस शानदार इमारत की नींव में स्थापित किया है, यह देखना वाकई बहुत दिलचस्प होगा।
कँवल ज़ियाई अविभाजित भारत के सियालकोट में वर्ष 1927 में जन्मे थे और वर्ष 2012 में उनका इंतक़ाल हुआ। एकता पर उनका यह शानदार शेर देखिये –
“हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहीं,
हमारे ख़ून में गँगा भी है चनाब भी है ।”
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद का मूल नाम मोहम्मद मुजाहिद अली था। वे वर्ष 1928 में लखीमपुर खीरी में जन्मे और बाद में रामपुर में मुस्तकिल तौर पर रहने लगे। वर्ष 2009 में उनका निधन हुआ। वे इस्लामी चिन्तन के प्रभाव में शायरी करनेवाले प्रसिद्ध शायर हैं। इस शेर में उन्होंने बहुत ही खूबसूरत ढंग से एकता की ताकत का ज़िक्र किया है –
“एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं,
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने।”
‘ख़ुर्शीद-ए-मुबीं’ का अर्थ है – विशिष्ट सूरज।
प्रोफ़ेसर मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद का जन्म लखनऊ में वर्ष 1929 में हुआ और वर्ष 2016 में उनका इंतक़ाल हुआ। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में उर्दू के विभागाध्यक्ष भी रहे। वे अदबी दुनिया में अपनी शायरी के साथ स्तरीय मंच संचालन के लिये भी बहुत प्रसिद्ध थे। ‘रक़्स-ए-शरर’, ‘शहर-ए-अदब’ और ‘शहर-ए-सितम’ उनकी मशहूर पुस्तकें हैं। एक आम हिंदुस्तानी के दिल में सारी दुनिया रहती है। किस खूबसूरती से उन्होंने हिंदुस्तान की इस विशेषता को अपने इस शेर में पिरोया है –
“अजीब दर्द का रिश्ता है सारी दुनिया में,
कहीं हो जलता मकाँ अपना घर लगे है मुझे।”
सरदार पंक्षी का जन्म 1932 में लुधियाना में हुआ। वे स्थापित भारतीय शायर है। ‘टुकड़े टुकड़े आईना’, ‘उजालों के हमसफ़र’, ‘गुलिस्तान-ए-अक़ीदत’, ‘कहकशां के रंग’ एवं ‘दर्द का तर्जुमा’ उनके चर्चित दीवान है। लंबे रिश्ते त्याग और मुआफ़ी से ही चल सकते हैं। एकता का अर्थ हमेशा जीवित रहने वाला रिश्ता ही है। उनका शानदार शेर देखिये-
“तुम हो मुजरिम हम हैं मुल्ज़िम चलो नया इंसाफ़ करें।
तुम भी हमें मुआ’फ़ी दे दो हम भी तुम्हें मुआ’फ़ करें।।”
डॉ बशीर बद्र हिंदुस्तान ही नहीं, दुनिया के बड़े शायरों में शुमार किये जाते है़। उनका जन्म वर्ष 1935 में हुआ। उनको अपने जीवन काल में ही किंवदंती बन जाने का हुनर हासिल है और मिर्ज़ा ग़ालिब के बाद दुनिया को सबसे ज्यादा मशहूर और मकबूल शेर देने का कीर्तिमान भी उन्हीं के नाम है। ‘आस’, ‘रोशनी के घरौंदे’, ‘उजाले अपनी यादों के’ आदि उनके चर्चित दीवान हैं। वे मज़हबों की फ़ेहरिश्त में सबसे ऊपर इंसानियत रखते हैं। उनके ये अशआर आपको बहुत देर तक इस देश की मिट्टी की ख़ु्श्बू से सराबोर रख सकते हैं –
“निकल के पास की मस्जिद से एक बच्चे ने,
फ़साद में जली मूरत पे हार डाला है।”
एक शेर यह भी –
“सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें,
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत।”
और यह भी –
“वो दिलों में आग लगाएगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा,
उसे अपने काम से काम है,मुझे अपने काम से काम है।”
क़ैशर शमीम का जन्म वर्ष 1936 में भारत के पश्चिम बंगाल प्रांत में हुआ। ‘पहाड़ काटे हुये’ और ‘साँस की धार’ उनके मशहूर दीवान है। वे कहते हैं कि हिंदू और मुसलमान मज़हब से बड़ा इश्क का मज़हब है। इस मज़हब में कभी भेदभाव नहीं होता क्योंकि ईश्वर ने तो बस एक ही धर्म बनाया है और वह है प्यार का धर्म। कितना खूबसूरत और असरदार शेर है यह उनका –
“मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब, जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं,
मेरे हल्क़े में आते हैं ‘तुलसी’ भी और ‘जामी’ भी।”
राहत इंदौरी का जन्म वर्ष 1950 में इंदौर में हुआ और 2020 में उनका निधन हुआ। वे आज के दौर के भारत के सबसे क़ामयाब शायरों में शुमार किये जाते हैं। हिंदुस्तानी एकता पर उनका एक बहुत प्रसिद्ध शेर आपकी नज़र –
“हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं,
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं।”
सुहैल काकोरवी उर्दू शायरी में लखनऊ का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका जन्म वर्ष 1950 में हुआ। वे कई भाषाओं में साहित्य रचते हैं और हर भाषा और विधा में उनका सुहैल काकोरवी एक जैसा मजबूत व असरदार दिखता है। उनका नाम उर्दू शायरी में बड़े अदब-ओ-ऐहतराम से लिया जाता है। उनका सारा साहित्य गंगा-जमुनी तहज़ीब और साझी विरासत की शानदार मिसाल है। उन्हें अगर इस्लामिक मज़हब की गहरी समझ है तो वे कृष्ण के भी परम भक्त हैं। उनकी यह विशेषता उन्हें एक संपूर्ण हिंदुस्तानी बनाती है। एकता पर उनके ये खूबसूरत अशआर देखिये –
“हमारे मुल्क हिंदुस्तान का है हुस्न इसमें ही,
हमारी एकता का रंग दुनिया से निराला है।
सजावट है दिलों की, ये जो है रंगों का गुलदस्ता,
कि इसको एकता कहते हैं, इसका वाह क्या कहना।”
ज़फर ज़ैदी का जन्म वर्ष 1950 में हुआ तथा इंतक़ाल वर्ष 1983. में हुआ। वे न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमरीका में रहते थे। ‘ज़ख़्म ज़ख़्म उजाला’ उनका दीवान है। एकता पर उनका एक शेर देखिये –
“इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए।
जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए।।”
मुनव्वर राना का जन्म रायबरेली में वर्ष 1952 में हुआ। उनका नाम उर्दू शायरी में बड़े ऐहतराम से लिया जाता है। ‘बग़ैर नक़्श का मकान’, ‘कहो ज़िल्ले इलाही से’, ‘मुज़ाहिरनामा’ और ‘माँ’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। भाषाओं के माध्यम से एकता स्थापित करने का उनका यह अंदाज़ खुद-ब-खुद यह साबित करता है कि आख़िर वे इतने मशहूर और मक़बूल क्यों हैं –
“सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में,
कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता।”
तश्ना आज़मी उर्दू शायरी का वह नाम है जिसने भारतवर्ष के बाहर भी हमारी एकता का बिगुल बजाया है। जब वे शायरी करते हैं तो वह हिंदू-मुसलमान नहीं बल्कि वे सिर्फ़ शायर होते हैं और इस शायर की जद में हर व्यक्ति है जो भारतीय है, जो हिंदुस्तानी है। क़ौमी एकता पर उनकी यह अनूठी रचना बेमिसाल है-
ये तेरे शिवालों की रौनक़, अरदास तेरे गुरु द्वारों की।
क्या ख़ूब सी सूरत और क़ामत, तिरी मस्जिद के मीनारों की।
हो ईद या होली बैसाखी, हर रंग में तू मस्ताना है।
है शमअ तू मेरे प्यारे वतन, सारी दुनिया परवाना है।
अब्दुल सलाम भारतीय शायर हैं। इनका जन्म वर्ष 1953 में हुआ। उनका कहना है कि उर्दू हिंदुस्तान की बेटी है क्योंकि उर्दू इसी के आँगन में जन्मी, पली और जवान हुई। तमाम भाषाओं के लफ़्जो़ को एक साथ समेट कर भी ज़ुबान की लाजवाब मिठास को कायम रखने की यह कुव्वत एकता ही तो है। वे फ़र्माते हैं –
“जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता,
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती।”
चरण सिंह बशर का जन्म 1957 में लखनऊ में हुआ। ‘परवाज़ का मौसम’ उनका दीवान है। उनकी शायरी का मिज़ाज ही निराला है और शायरी की उनकी अपनी शैली उन्हें सबसे अलग पहचान देती है। क्या कलेजे में समा जाने वाला शेर कहा है –
“ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है,
इलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है।”
मिर्ज़ा अतहर ज़िया एक युवा शायर हैं जिनका जन्म वर्ष 1981 में आजमगढ़ में हुआ। उनकी शायरी का स्तर उर्दू शायरी के हल्के में बहुत ऊँचा माना जाता है। एकता केवल मोहब्बत से आती है और वे कितनी खूबसूरती से अपनी बात कहते हैं –
“मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए,
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ ।”
किसी अज्ञात शायर का यह शेर भी बहुत खूबसूरत है और बहुत ही सहज तरीके से एकता के मतलब बयान करता है –
“हमारे ग़म तुम्हारे ग़म बराबर हैं।
सो इस निस्बत से तुम और हम बराबर हैं ।।”
युवा शायर विवेक भटनागर विशिष्ट अंदाज़ के शायर हैं। उनके अशआर में गहराई देखते ही बनती है। ज़िंदगी हो या मुल्क़, दोनों ही पारस्परिक एकता व सहयोग के बिना नहीं चल सकते। उनका यह शेर देखिये –
“हम मुसाफ़िर एक ही मंज़िल के हैं, पास आइए
दूर रहकर तो लगेगा रास्ता लंबा बहुत ।”
अरविंद असर एक असरदार युवा शायर हैं। उनके पास तराशी हुई शायरी है। कम लफ़्ज़ों में गहरी बात को कहने का हुनर बरबस पाठकों/श्रोताओं का ध्यान उनकी ओर आकर्षित करता है। एकता के सही अर्थ क्या हैं और एकता के प्रति जनमानस की भ्रांति क्या है, दोनों को स्पष्ट किया है उन्होंने। आइये, मिलते हैं उनसे –
“मै एकता की सीप में महफ़ूज़ हूं “असर”,
सब मौसमों में गंगो -जमन ओढ़ता हूं मैं।”
और अब एकता के नाम पर इस षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश भी देखिये –
“धर्म, भाषा, जाति की संस्था से ख़ुद को जोड़कर,।
एकता के नाम पर हम सब विभाजित हो गए।”
मध्य प्रदेश से संबंध रखने वाले युवा शायर राज तिवारी का चिंतन भी रेखांकित किये जाने योग्य है। वे न केवल लिखते हैं बल्कि बहुत शानदार लिखते हैं। अगर हमारे देश का युवा उनका संदेश समझ कर अमल में ले आये तो यक़ीनन आने वाला समय दुनिया में हिंदुस्तान का ही होगा –
“न मस्जिद बचेगी न मंदिर किसी का,
अगर आदमी ही नहीं आदमी का।”
राजेन्द्र वर्मा लखनऊ के चर्चित साहित्यकार हैं औ गद्य और पद्य की तमाम विधाओं में साधिकार लिखते हैं। उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। एकता पर उनके हिंदी की चाशनी में सराबोर यह शेर मुलाहिजा फ़र्मायें –
“भले ही हम विभाजित धर्म अथवा जातियों में हों,
तदपि अवसर पड़े तो, हिन्द के हम एक-ही स्वर हैं।
एक अजीब सा जादू है हिंदुस्तान की मिट्टी में कि सामान्य समय में तमाम मुद्दों पर और तमाम कारणों से अनेक हिस्सों में बँटा दिखाई देता यह मुल्क जैसी ही किसी बाहरी शक्ति से कोई खतरा देखता है, यह अचानक ही एक संपूर्ण एकीकृत देश के रूप में उपस्थित हो जाता है। सच है – यही एकता की वह चाशनी है जो सुस्वादिष्ट व पौष्टिक आहार के एक-एक कण को मिठास के साथ बाँध देती है और इसीलिये इस मुल्क का हर बाशिंदा सारी दुनिया में कहीं भी हो, अपनी हिंदुस्तानी ख़ुश्बू के चलते हमेशा पहचाना जाता है। हमारी ताकत गगनभेदी लड़ाकू विमान, ज़मीन को किसी दैत्य की तरह रौंदते विशालकाय पैटन टैंक या नीले सागर में किसी छोटे द्वीप की तरह पसरे जहाजी बेड़े नहीं हैं बल्कि एक हिंदुस्तानी से दूसरे हिंदुस्तानी के बीच का वह अनलिखा अनकहा खूबसूरत परंपरागत रिश्ता है जिसे हम ‘एकता’ कहते हैं।
चलते-चलते हमारी मिठास भरी जादुई एकता की नज़र मेरे भी दो-एक शेर –
“मुल्क सभी का है यारों,
अपना अपना हिस्सा क्या?”
और एक यह शेर भी –
“बस इतना ही बहुत है, मैं भी इंसा, तू भी इंसा है,
बस इसके बाद मैंने कोई भी रिश्ता नहीं देखा।”
-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव